रिटायरमेंट के बाद सबसे बड़ी चिंता क्या होती है?
हर महीने आने वाली स्थिर आमदनी, ताकि आपकी रोजमर्रा की जरूरतें बिना किसी तनाव के पूरी होती रहें।
इसी वजह से रिटायरमेंट प्लानिंग में ऐसे इन्वेस्टमेंट ऑप्शन्स पर खास ध्यान दिया जाता है, जो आपको भरोसेमंद और लगातार इनकम दे सकें।
लेकिन सिर्फ इनकम देखना ही काफी नहीं है—टैक्सेशन नियमों को भी समझना जरूरी है, क्योंकि टैक्स आपकी नेट इनकम को बदल सकता है। ज़रा-सा गलत फैसला भी आपकी रिटायरमेंट इनकम को कम कर सकता है।
इसीलिए आज हम समझेंगे कि हाइब्रिड फंड्स में निवेश करते समय आपके लिए पुरानी टैक्स रिजीम बेहतर है या नई टैक्स रिजीम—और क्यों?
पिछले दो सालों में टैक्स नियमों में बड़े बदलाव हुए हैं
फाइनेंशियल एक्सपर्ट्स के मुताबिक पिछले 1–2 साल के दौरान म्यूचुअल फंड्स पर टैक्सेशन काफी बदल गया है।
- इंडेक्सेशन का फायदा अब लगभग खत्म हो चुका है
- डेट फंड्स और नॉन-इक्विटी फंड्स पर पहले जैसे टैक्स बेनिफिट नहीं मिलते
- कई कैटेगरी के फंड्स पर LTCG (लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन) का नियम बदल गया है
इसका सीधा असर आम निवेशकों पर पड़ा है, खासकर उन लोगों पर जो रिटायरमेंट के लिए रेग्युलर इनकम चाहते हैं।
डेट फंड्स: नियम क्या कहते हैं?
अगर किसी फंड में 65% या उससे ज्यादा डेट इंस्ट्रूमेंट्स हों, उसे डेट फंड माना जाता है।
नया नियम (23 जुलाई 2024 के बाद):
- ऐसे फंड्स पर सभी गेन शॉर्ट-टर्म माने जाएंगे
- चाहे कितने भी समय तक रखा हो
- टैक्स लगेगा आपकी आयकर स्लैब के हिसाब से
इस बदलाव के बाद डेट फंड्स रिटायरमेंट इनकम के लिए पहले जितने आकर्षक नहीं रहे।
इक्विटी-ओरिएंटेड स्कीम: यहाँ नियम अलग हैं
अगर फंड का 65% या उससे ज्यादा निवेश भारतीय शेयरों में है, तो वह इक्विटी-ओरिएंटेड स्कीम कहलाता है।
टैक्स नियम:
- 12 महीने से ज्यादा रखने पर → 12.50% LTCG टैक्स
- पहले 1.25 लाख रुपए तक का गेन टैक्स-फ्री
- 12 महीने के अंदर बेचने पर → 20% टैक्स
और जो फंड न पूरी तरह डेट हैं, न इक्विटी? (BAF, Multi-Asset)
इन फंड्स पर टैक्सेशन थोड़ा अलग है:
- 24 महीने से ज्यादा रखने पर → 12.5% LTCG
- 24 महीने से पहले बेचने पर → स्लैब के अनुसार टैक्स
इंडस्ट्री में इन्हें हाइब्रिड या मल्टी-एसेट फंड्स के नाम से जाना जाता है, जो रिटायरमेंट के लिए काफी लोकप्रिय हैं।
नई टैक्स रिजीम में टैक्स ज्यादा क्यों लग सकता है?
नई टैक्स रिजीम में एक बड़ा फायदा है —
सेक्शन 87A के तहत 12 लाख तक की इनकम पर कोई टैक्स नहीं।
लेकिन ध्यान रहे—
यह छूट सिर्फ स्लैब रेट टैक्स पर मिलती है,
LTCG (12.5%) पर नहीं।
इसका मतलब:
- अगर कुल इनकम 12 लाख से कम है
→ IDCW (डिविडेंड) तो टैक्स-फ्री रहेगा - लेकिन Multi-Asset या BAF से होने वाले LTCG पर 12.5% टैक्स देना ही पड़ेगा, क्योंकि ये न डेट हैं, न इक्विटी।
यही वजह है कि रिटायरमेंट इनकम चाहने वालों के लिए नई टैक्स रिजीम हमेशा फायदेमंद नहीं होती।
पुरानी टैक्स रिजीम कहां फायदेमंद पड़ती है?
पुरानी टैक्स व्यवस्था में सेक्शन 87A के तहत 5 लाख रुपए तक की इनकम टैक्स-फ्री होती है।
और अगर आपकी सालाना कुल इनकम ज्यादा नहीं है —
कहें कि लगभग 5 लाख रुपए तक —
तो पुरानी टैक्स रिजीम आपके लिए बहुत बेहतर साबित हो सकती है।
क्यों?
क्योंकि—
- पुरानी टैक्स रिजीम में डिविडेंड (IDCW) टैक्स-फ्री रहेगा
- Multi-Asset और Balanced Advantage Funds से मिलने वाला LTCG भी टैक्स-फ्री हो सकता है (5 लाख की सीमा में)
यानी, कम इनकम और हाइब्रिड फंड्स पसंद करने वाले निवेशकों के लिए पुरानी टैक्स रिजीम एक स्मार्ट विकल्प बन सकती है।
रिटायरमेंट इनकम के लिए निवेश सलाह
अगर आपकी जरूरत है कि हर महीने या तिमाही आपके खाते में पैसा आए, तो आपको—
✔ Reinvestment option की बजाय
IDCW Payout (Dividends Payout) चुनना चाहिए।
क्योंकि रिटायरमेंट में मुख्य लक्ष्य है—
रेग्युलर इनकम,
न कि सिर्फ फंड को बढ़ाना।
निष्कर्ष: कौन-सा ऑप्शन बेहतर?
नई टैक्स रिजीम:
अगर आपकी इनकम ज्यादा है और आप सरल टैक्स व्यवस्था चाहते हैं, तो ठीक है।
लेकिन LTCG पर छूट नहीं मिलेगी।
पुरानी टैक्स रिजीम:
अगर आपकी कुल इनकम कम है (5 लाख के आसपास) और आप Multi-Asset / BAF जैसे हाइब्रिड फंड का चुनाव कर रहे हैं,
तो यह आपके लिए ज्यादा फायदेमंद साबित होगी।